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पंचांग विवाह पण्णति ( भगवती) सूत्र
सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणीणं अप्पबहुगाणि, तिण्णीवि जहा पढमे दंडए जाव मणुस्साणं॥३॥ जीवाणं भंते! किं संजया, असंजया, संजयासंजया ? गोयमा ! जीवा संजयावि, अंसंजयावि, संजयासंजयावि॥ एवं जाव जहेव पण्णवणाए तहेव भाणिय जाव केमाणिया अप्पाबहुगं तहेव तिण्णिवि भाणियव्वं ॥४॥ जीवाणं भंते ! किं पच्च
खाणी अपच्चक्खाणी पच्चक्खाणापच्चक्खाणी ? गोयमा ! जीवा पच्चक्खाणी एंव तिण्णिवि एवं मणुस्सावि ॥ पंचिंदियतिरिक्खजोणिया आदिल्लविरहिया; सब्वे
अपच्चक्खाणी जाव वेमाणिया ॥ एएसिणं भंते ! जीवाणं पच्चक्खाणणं जाव विसे शेष सब दंडकवाले अप्रत्याख्यानी हैं. इस की अल्पाबहुत मूलगुन प्रत्याख्यानी, उत्तरगुनप्रत्याख्यानी व अप्रत्याख्यानी की अल्पाबहुत्व जैसे जानना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! क्या जीव संयति, असंयति अथवा संयतासंयति हैं ? अर्थी गौतम ! जीव संयति, असंयति व संयतामयति तीनों हैं. सब से थोडे संयति, असंयति असंख्यात गुने व संयतासंयति अनंत गुने ॥४॥ अहो भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी व प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं? अहो गौतम ! जीव तीनों प्रकार के हैं. ऐसे ही मनष्य में जानना. तिर्यंच पंचेन्द्रिय प्रत्याख्यानामत्याख्यानी व अप्रत्याख्यानी होते हैं और शेष सब दंडकवाले अपत्याख्यानी हैं. समुच्चय जीव की अल्पावहुत्व कहते हैं. सब से थोडे प्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानामत्या
488086.17 सातवा शतकका दूसरा उद्देशाgop428
भावार्थ
Joyo