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________________ iङ्ग विचाह ज्ञप्ति (भगवती) सूत्र कर पंचा श्री भगवती सूत्र की प्रस्तावना. श्लोक-सर्वज्ञ मीश्वर मनंत मसंग मग्रं, सर्वाय मस्यरनीस मनीहसत्यम् । शिवं शिवं शिवकर व्यपेतं, श्रीमाजिनं जितरिपुप्रयतप्रणामि ॥ १॥ ___ अर्थ-प्रथम इष्टार्थ की सिद्धि के लिये मंगलाचरण करते हैं. . तीनों लोक के ईश्वर, अंत रहित सुख के भोक्ता, कर्म काया के संग रहित, सर्व लोकाग्र में रहे, अथवा सब के अग्रेश्वर, कंदर्प रहित, किसी के स्वामित्व रहित, स्नेह रहित, सकलार्थ की सिद्धि कर सिद्ध हुए. कर्मों के उपद्रव रहित, नि स्थान में संस्थित, अन्य आत्माओं के कल्याणकारी, उपद्रव के हर्ता, अपरम्पार गुणों के धारक, अनि. न्द्रिय अतीव सुख में सदैव लीन, अष्टकर्म रूप महाशत्रुओं के पराभव करने वाले ऐसे जिनेन्द्र भगवान को यथाविधी सविनय यथा युक्तनमस्कार करता हूं. देव देवं जिनं नत्वा, नत्वा च श्रुतदेवतम्। वार्तिकं पंचममंगस्य, वक्षे वृत्यानुसारता॥9॥ ___ अर्थात्-देवाधि देव श्री जिनेश्वर भगवान को और श्रुत देवता, श्रुत ज्ञान के दाता गुरु महाराज को नमस्कार कर के पंचमांगे श्री विवाह प्रज्ञप्ति ( भगवती) सूत्र का हिन्दी भाषानुवाद मेरी अल्पमत्यानुसार कहूंगा. प्रथम के चारो अंगों में चार अनुयोग का कथन भिन्न २ कहा और इस मूत्र में चारों अनुयोगों का कथन किया गया है इस का नाम शिवह प्रज्ञप्ति इस लिये प्रसिद्ध हुवा है। 488238 प्रस्तावना 480880
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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