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शब्दाथही मयत अनही बादलते अ० नही म्पर्शन विविध्वसपात । पा० पुट्ठल को अनही संघात्र अ
नहीं बादलिय अनही स्पर्शहर गा: गौतम म० सर्व में थोडा पो० पुद्गल अ० नहीं सुंघेहवे अ. नही बादलिये नराने धनह। स्पर्शहवे अ. अनंतगुने ते. तेइन्द्रिय को घा० घ्राणेन्द्रिय जिक जिव्हान्द्रय फा० शान्द्रयपन ३० मात्रा भुं० वारंवार परिणमें च चतुरिन्द्रिय को च. चक्षु
याणं णाणत्तं ठिईए जाव अणेगाई च णं भागसहस्साई अणाघाइजमाणाई, अणासाइजमाणाई, अफासाइजमाणाई विदंसमावज्जति. एएसिणं भंते पोग्गलाणं अणाघाइजमाणाणं, अणासाइजमाणाणं अफासाइज माणाणं य पच्छा ॥ गोयमा? सव्वत्थोवा पोग्गला अणाघाइजमाणा, अणासाइजमाणा अणंतगुणा अफासाइजमा
णा अणंतगुणा । तेइंदियाणं घाणेदिय जिभिदिय फासिंदिय बेमायत्ताए भुजो भुजो भावार्थ धिकार अनेक भाग सहस्र घ्राणेन्द्रिय से नहीं सुंघते, रसनेन्द्रिय मे नहीं आस्वादते व स्पर्शेन्द्रिय से
नहीं स्पर्शते नष्ट होते हैं वहां तक पहिले जैसे कहना. उन में कोनसा अल्प व बहुत है ? तुल्य व विशेषाधिक है ! अहो गौतम ! सब से थोडे घाणेन्द्रियपने नहीं सुंघे हुवे पुद्गलों, इस से रसनेन्द्रियपने नहीं 10 आस्वादेहबे पुद्गलों अनंत गुने, इस मे सन्द्रिपने नहीं स्पर्श हुवे पुद्गलों अनंत गुने, तेइन्द्रिय को आहार के पुद्गल घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय स्पर्शेन्द्रियपने, व विविध प्रकार से परिणमते हैं वैसे ही चतुगेन्द्रय को ।
4. 33 पंचयांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र
3308 पहिला शतकका पहिला उद्देशा 2880888