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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
उत्पन्न होवे गो० गौतम अ• समय समय में अ० अंतर रहित आ० आहार की इच्छा स० उत्पन्न होवे पु. पृथ्वी काया भं० भगवन् किं. कौनसा आ० आहार आ० ग्रहण करे गो० गौतम द. द्रव्य से ज०१ जैसे मे० नारकी णि निर्व्याघात छ. छदिशि में वा. व्याघात आश्री सि० काचित् ति० तीनदिशा में सि० क्वचितू च० चारदिशा में सि० क्वचित् पं०. पांचदिशा में व. वर्ण से का० काला नी नीलाई
आहारटे समुप्पज्जइ ? गोयमा ! अणुसमयं अविरहिए आहारट्टे समुप्पज्जइ ॥ पुढविकाइयाणं भंते किमाहार माहारेति? गोयमा ! दव्वओ जहा णेरइयाणं. णिव्वाघाएणं छदिसिं वाघायंपडुच्च सियतिदिसिं सियचउदिसिं, सियपंचदिसिं, वण्णओ
काल नील लोहिय हालिद्द सुकिलाणं, गंधओ सुब्भिगंध दुरभिगंधाई, रसओ तित्ताई कायिक जीव क्या आहार करते हैं ? द्रव्य से अनंत प्रदेशात्मक द्रव्य का आहार करे वगैरह सब अधिकार नारकी जैसे कहना. निर्व्याघात से छ दिशि का आहार लेवे पूर्वादिचार व ऊर्ध्व और अधो. व्याघात आश्रित अर्थात लोकान्त के उपर या नीचे व पूर्व दक्षिण में अलोक होवे वेस स्थान उत्पन्न होने वाले पृथ्वी कायिक जीव तीन दिशा का आहार लेवें. उपर नीचे अलोक होवे वैसे स्थान में उत्पन्न होनेवाले चार दिशाका आहार करें, और छ दिशामें से एक दिशा में ही मात्र अलोक होवे वैसेस्थान उत्पन्न होनेवाले पांच
१ लोकान्त निष्कुट को व्याघात कहते हैं उसको छोडकर अन्यत्र उत्पन्न होनेवाले.
86-4300- पहिला शतक का पहिला उद्दशा-20-05
भावार्थ
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