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शब्दार्थ
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सं० संस्थान से सं० संस्थित स. सर्व र० रत्नमय अ० स्वच्छ जा० यावत् प० प्रतिरूप से० . उस ए.. एक प० पद्मवर वे० वेदिका व. वनखंड स० सर्व बाजु सं० रहाहुवा प० पद्मवर वे बेदिका २० वनखंड का व० वर्णन ॥ १॥ त० उप्त नि० तिगिच्छ कूटके उ० उत्पात ५० पर्वत की उ० उपर ब. बहुत २० रमणिक भूक भूमि भाग प० प्ररूपा २० वर्णन युक्त तक उस . ब० बहुत म. मध्य दे० देश भाग में म. बडा ए. एक पा० प्रासाद ५० प्ररूपा अ० अढाइ सो योजन उ० ऊंचा उ० ऊंचपने ५० पच्चीम में
उप्पि विसाले. मझे वरवइरविग्गहे, महामउंद संठाण संठिए सब्बरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ सेणं एगाए पउमवरवेइयाए वणखंडेणय सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते पउमवर वेइयाए वणखंडस्स य वण्णओ ॥ १ ॥ तस्सणं तिगिच्छिकूडस्स उप्पाय पव्वयस्स उप्पि बहसमरमाणिजे भमिभागे पण्णते, वन्नओ तस्सण बहुसमरमाणजस्त बहु मञ्झ देसभाए एत्थणं महं एगे पासायवार्डिसए पद्मवर वेदिका अर्थ योजन की ऊंची व पांचसो धनुष्य की चौडी कही है. सब रन्नमय है. वह वेदिका तिगिच्छ कूट पर्वत के उपर के तल को चारो तरफ पारीध समानघेर कर रही है. उस वेदिका के चारों तरफ चार वनखण्ड दोकोश से कम के चोडे कहे हैं. ॥ १॥ उस तिगिच्छकूट पर्वत पर एक बहुत रमणिक भामिभाग है जैत नगारे का उपर का तल बराबर रहता है वैसाही उस का भूमिभाग है. मध्य
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ