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मुबार भगवतीए. अतीसं सतं मताणं. उदेसगाणं, इचलसीत सयसहस्सा पदाणं, पवरवर णाणसीहि भावाभाव मणता पण्णता एत्थं मंगसि ॥ ॥ तव णियम विणक्वेलो जयतिम्या जाणविमल विगुल जलो, हेतु सतविपुल संवेगो. संघलमुद्दो गुणविसालो २॥ सम्पत्ता भावति ।। णमो गोतमादीणं गणहगाणं. मा भगवती विवहा पत्नती, पणनो दुवार संगस्स गणिण्डिगम्स ।। गाथा।। कुम्मनु संठिय चलणा,
अमिलिय कोरंट्वेंट संकासा, सुयदेवया भगवती, मममति तिमिरं पणासेतु ॥ १ ॥ শাশ্বার্থ अब भगवती सूत्र में उपसंहार व अंतिम मंगलाचरण करते हुये कहते हैं कि श्री भगवती सूत्रों सब मोलकर
- १३८ शतक सुने. जिनमें पहिल के बत्तीमशत कय अंतर शतक नहीं है. तेत्तीसव शतक से लगाकर ४० शतक पर्यन्त बारह २ अंतर शतक कहे हैं; यो म३१२४७८४ शक होते हैं. फीर चालीसवे शतक इसी शतकoe और एकतालीसा एकही शतक है, यो सब मीलकर १३८ शतक हुए. इन एकमो अडतीन शतक १२५
उद्देशे कहे हैं। अव भगवती का परिमाण कहने को गाथा कहते हैं. इस पंचमें अंग में चौगसीलाख पद हैं. SH उन पद का शानशुरु गमसे जाना जाता है. इस अंगमें क हे भाव प्रवर प्रशन केवल ज्ञानकर जाने केवलदर्शनकर देखे
अनंत भावाभाव उपही प्रकार प्ररूपे हैं. अब अंत्य मंगलम संघको समुद्रकी, ओपमासे स्तवंत हैं:- दारह प्रकारका
पंचमान विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
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