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सूत्र
भावार्थ
ॐ अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उववनंति किं आयजसं, उवजीवंति आय अजसं उवजीवंति ? गोयमा ! आयअजसंपि उवजीवंति, आय-अजसंपि उववजीवंति ॥ अइ आयजसे उवजीवंति किं सलेस्सा अलेस्सा ? गोयमा ! सलेस्सावि अलेस्सावि || जदि अलेस्सा किं सकिरिया - अकिरिया ? गोयमा ! णो सकरिया अकिरिया || जदि अकिरिया तेणव भवग्गहणं सिज्झति जाव अंतंकरेति ? हंता सिज्यंति जाव अंतंकरेंति ॥ जदि सलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया णो अकिरिया, जदि सकिरिया तेणं भवग्गहणणं सिझंति जाव अंतंकरैति ? गोयमा ! अत्थेगइया तेर्णव भवगाहणेणं
होते हैं परंतु अभ्यम से उत्पन्न होते हैं वहां तक कहना. यदि संयम से उत्पन्न होते हैं तो क्या संयम से उपजीविका करते हैं या असंयम से उपजीविका करते हैं? अहो गौतम ! संयम से व असंयम से दोनों प्रकार उपजीविका करते हैं. यदि संयमसे उपजीविका करते हैं तो सलेशी अथवा अलेशी? अहो गौतम ! सलेशी व अलेशी दोनों होवे. यदि अलेशी होवे तो क्या सक्रिय होवे या अक्रिय होवे ? अहो गौतम ! सक्रिय होवे नहीं परंतु अक्रिय होवे. यदि अक्रिय होवे तो क्या उस ही भव में सीझे बुझे यावत् अंत करे ? अहो गौतम ! उसी भाव में सीझे बुझे यात्रत् अंत करे. यदि सलेशी होत्रे तो क्या सक्रिय होवे कि अक्रिय होते? अहो गौतम ! सक्रिय
* प्रकाशक- राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी क
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