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________________ 42 अनुवाइक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + ॥ एकोनचत्वारिंशतम शतकम् ॥ कडजुम्म २ असण्णि पंचिंदियाणं भंते ! कओ उववजंति ? जहा वेइंदियाणं तहेव असण्णिसुवि बारस सया कायवा गवरं ओगाहणा जहण्णणं अंगुलस्त असंखेजइ भागं, उक्कोसेणं जोअण सहस्सं, संचिट्ठणा जहण्णेणं एक समयं. उक्कोसेणं पुव्वकोडि पुहुत्तं ॥ ठिई जहणणं एवं समयं उक्कोसेणं पुवकोडी, सेसं वेइंदियाणं ॥ सेवं भते! भंतत्ति ॥ असण्णि पंचिंदिय महाजुम्म सया सम्मत्ता ॥ ३६ ॥ एगूणयालीसइमं सयं सम्मत्तं ॥ ३९ ॥ अहो भगवन् ! कृतयुग्म कृतयुग्म असंही पंचेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों जैसे बेइन्द्रिय का कहा जैसे ही असंज्ञी के बारव शतक कहना. परंतु अवगाहना जगन्य अंगुल का असंख्यानका भाग उत्कृष्ट जार योजन. संचिठणा जघन्य एक समय उत्कृष्ट प्रत्येक पर्ष कोड. भव स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट पूर्व क्रोड. शेष सब बेइन्द्रिय जैसे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह असंझी पंचेन्द्रिय महायुग्म नामक उन्नचालीसदो शतक संपूर्ण हुवा ॥ ३९ ॥ * * माशा-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायनी ज्वायमसादजी . भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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