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________________ - - पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र कालओ केचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं एक समयं उक्कोसेणं संखजकालं, ठिई जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं ॥ आहारो णियमं छदिसिं तिणि समुग्घाया ॥ सेस तहेव जाव अणंत खुत्तो ॥ एवं सोलसमुवि जुम्मेसु ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ वेइंदिय महाजुम्म सयं पढमोदेसो सम्मत्तो ॥ ३६ ॥ १॥ . पढम समय कडजुम्म २ वेइंदियाणं भंते ! केओ उववजंति ? एवं जहा एगिदिय महाजुम्माणं पढमसमय उद्देसए दस णाणत्ताई ताइंचेव दस इहवि ॥ एक्कारसवि. इमं णाणत्तं, णो मणजोगी णो वइजोगी कायजोगी ॥ संसं जहा वेइंदियाणं चेव, अहो भगवन् ! वे कृतयुग्प कृतयुग्म बेइन्द्रिय कितने काल पर्यन्त रहते हैं ? अहो गौतम ! जघन्य एक समय का उत्कृष्ट संख्यात काल काया और स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट बारहवर्ष भवस्थिति. आहार नियमा छ दिशीका. तीन समुद्धात. शेष अनंतवक्त उत्पन्न होने पर्यन्त वैसे ही, ऐसे ही सोलह युग्मों में जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह बेइन्द्रिय महायग्म नामक दूसरा शतक का पहिला उद्देशा मंपूर्ण हुवा, ॥३६॥२॥ * अहो भगवन् प्रथम समय कृतयुग्म २ वेइन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों जैसे पहिला महायुग्म नामक एकन्द्रिय शतक का पहिला समय उद्देशे में दश विशषताओं कही वे सब यहां कहा- और अग्यारहवी, मन योगी वनच योगी नहीं परंतु एक काया योगी है: शेष बेइंन्द्रिय 482 पीसना शतक का पाल भावाथे
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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