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चरिमुद्देसओ तहेव गिरव. सेसं. ॥ सेवं भंते २ ति ॥ घेतीसम• अठमो ॥३५॥८॥ पढम अचरिम समय कडजुम्म २ एगिदियाणं भंते ! कओ उववजंति ? जहा पढमु. हेसओ तहेव णिरव सेसं ॥ सेवं भंते २ त्ति ॥ जाव विहरइ ॥ तेती० नवमो!॥३५||९ 'चरिम २ समय कडजुम्म एगिदियाणं भंते! कओ उववज्जति! जहा चउत्थो उद्देसओ
तहेव ॥ सेवं भंते! भंतत्ति ॥ पेंतीसम सयस्स दसमो उद्देसी ॥ ३५ ॥ १० ॥ x
चरिम अररिम समय कडजुम्म २ एगिदियाणंः भंते ! कओ उववज्जति ?. उद्देशा कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह पेंतीसवा शतक का आठवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ३५॥ ८॥ . x. ॥ अहो भगवन् ! प्रथम अचरिम समय कृतयुग्म २ एकन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? जैसे पहिला उदेशा कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य है. यह तीसवा शतक का नववा उद्देशा मंपूर्ण हुवा ॥ ३५ ॥१॥ ___ अहो भगवन ! चरिम चरिम समय कृतयुग्म. एकेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों जैसे चौथा उद्देशा कहा वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. पेंतीसवा शतक का दशवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १५ ॥ १०॥ * ॥ अहो भगवन् ! चरिम अचरिम कृतयुग्म कृतयम्म एकेन्द्रिय
री मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 48 अनुवादक-बालब्रह्मचा
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवस हायजी ज्वाला प्रसादजी.
भावार्थ