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श्री अमोलक ऋषिजी Auranrammemoranrnim
अपढम समय कडजुम्म एगिदियाणं भंते ! कओ उववजीत, एसो जहा पढमुद्देमो सोलसहिवि जुम्मसु तहव णेयवो, जाप कालेओग कलिओगत्ताए जाव अगंतखुत्तो। संवं भंते २ त्ति ॥ पैतीसमस्सयस्स ततिओ उद्देसो ॥ २५ ॥ ३ ॥ + चरिमसयय कडजुम्म कडजुम्म एगिदियाणं भंते ! कआ उवव्रजति ? एवं जहेत्र पढमसमय उद्देसओ णवरं देवा न उववज्जति, तेउलेस्सा ण पुच्छंति सेसं तहेव सेवं भंते २ ति ॥ पेंतीसम सयस्स चउत्यो उद्दसो ॥ २५ ॥ ४॥ x
अचरिम समय कडजुम्म २ एगिदियाणं भंते ! कओ उववज्जति ? जहा पढमसमय # अहो भगवन् ! अप्रथम सपय कृतयुग्म एकेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! जैसे पहिला
उद्देशा कहा वैसे ही सोलह युग्मों में कहना. ग्राषद् कल्याज कल्याजपने यारत् अनंतवक्त वहां तक कहना, यह पेंतीसवा शतक का तीसरा उद्दशा संपूर्ण हुवा ॥ ३० ॥ ३ ॥
चरिम समय कृतयुग्म एकन्दिय कहां से उत्पन्न होते हैं यों जैसे पहिला उद्देशा कहा वैसे ही कहना, परंतु देव इस में उत्पन्न नहीं होते हैं. इस से तेजा लेश्या की पृच्छा कहना नहीं. अहो भगवन् !
आपके वचन सत्य हैं. यह तीसवा शतक का चौथा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ३५ ॥ ४॥ + 15 अहो भगवन् ! अचरिम कृतयुग्म २ एकेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? यो पहिला समय उद्देशा कहा,
प्रकाशक-सजावजदुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ