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________________ 14. जो इार्थीवेदगा, जो पुरिसवेदगा, गपुंसगवेदगावा, इत्थीवेद. बंधगावा, पुरिसवेद बंधगावा णपुंसगवेदं बंधगावा ।। णो सणी असणी, ॥ सइंदिया णो अर्णिदिया ॥७॥ तेणं भंते ! कडजुम्म २ एगिदियाउत्ति कालओ केवंचिरंहोइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं अणंतं कालं अणंताओ ओसप्पिणी उसप्पिणीओ वणरसइकालो संवेहोणभण्णइ ॥ आहारो जहा उप्पलुद्देसए णवरं णिव्याघाएणं छदिसि वाघायं पडुच्च सिय तिदिसं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसि सेसं तहेव. ठिई जहणेणं एक समयं उकेसेणं वावीस वाससहस्साई॥ममुग्धाया आदिजा, चत्तारि मरणंतिय समुग्घाया तेणं समोहयावि भावार्थ वेदके बंधक,पुरुष वेदके बंधक और नपुंसक वेदके बंधक यो तनावेदके बंधक हैं संझी नहीं हैं.परंतु असंही हा और सइन्द्रिय हैं परंतु अनेन्द्रिय नहीं हैं ॥७॥ अहो भगवन् ! वे कृत युग्मरएकेन्द्रिय काल से कितना काल} रहते हैं? अहो गौतम! जयन्य एक ममय उत्कृष्ट अनंत काल अनंत अवमर्पिणी उत्सर्पिणी. यहां वनस्पति काया का संबंध नहीं कहना. आहार उत्पल उद्देशा जैसे कहना परंतु निर्व्याघात से छ दिशी और व्याघात से स्थान तीन, स्थान चार व स्थान पांच दिशिका आहार करे. स्थिति जघन्य एक समय की ! उत्कृष्ट बावीस हजार वर्षकी समुद्धात पहिली चार, मारणांतिक समुद्घात से समोहया व असमोहया ऐसे 4 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलके ऋषिजी + प्रकाशक राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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