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4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
तिसमइओ चउसमइओ विग्गओ भाणियब्बो ॥१०॥ अपज्जतो सुहुम पुढवीकाइएणं भंते ! लोगस्म पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहइत्ता जे भावर लोगस्स पञ्चत्थिमिले चरिमंते अपज्जत्त सुहुम पुटवीकाइयत्ताए उववज्जित्तए सेणं भंते ! कइ समइएणं विंगहेणं उववज्जेजा ? गोयमा ! एगसयइएणंवा दुसमइएणंवा तिसमइरणंवा चउसमइएणंवा विग्गहेणं उववज्जेज्जा, । से केणटेणं भंते! एवं अहेव पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहया, पुरच्छिमिल्ले चेव चरिमत्ते उवातिया तहेव पुरच्चिमिल्ले
चरिमंते समोहया पच्चच्छिमिल्ले चरिमंमंते उववातेयव्वा ॥ सव्वे अपज्जत्ता सुहुम वनस्पतिकाया में दो, तीन अश्या चार समय के विग्रह से उत्पन्न होवे वहां तक कहना ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाया लोक के पूर्व के चरिमांत में मारणांतिक समुद्धात करके जो लोक के पश्चिम के चरिमांन में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथीकायापने उत्पन्न होने योग्य होने वह कितने समय के विग्रह से उत्पन्न होवे ? अहो गौतए ! एक समय, दो समय, तीन समय व चार समय के विग्रह में उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया? अहो गौतम ! जैसे पूर्व के चरिमांत में मारणांतिक समुद्धात करके पूर्व के चरिमांत में उत्पन्न होने का कहा वैसे ही पर्व के चरिमांत में मारणांतिक समुहात
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी *
भावार्थ
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