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________________ ३००८ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी एसु अजत्तएसुय पजत्तएसुथ,सुहुम वणस्सइकाइएसु अपज्जत्तएसु पञ्जत्तएभुय, वारसमु वि ठाणेमु॥एएणं चेव कमेणं भाणियव्वो सुहुम पुढवीकाइओ पज्जत्तओ एवंचेव णिरवसेसे बारसविट्ठाणसु उववातंयव्वो २४। एवं एएणं गमएणं जाव सुहुम वणस्सइ काइओ पज्जत्तओ । सुहुम वणस्मइ काइएसु पज्जत्तएस चेव भाणियब्वो ॥ ९ ॥ अपजन्ता सुहम पुढवीकाइयाणं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते सवोहए समोहएता, जे भविए लोगस्स दाहिणिल्ले चरिमंते अपज्जत्ता सुहुम पुढवीकाइएमु उववज्जित्तए सेणं भंते ! कइ समइएणं विग्गहेणं उववजेज्जा ? गोगमा । दम पइएणांवा तिलमइएणंवा कर के लोक के पूर्व के चरिमांत में पर्याप्त सूक्ष्म पृथक अय, ते उकाया, सूक्ष्म वायुकाया, बादर वायुकायां, व सूक्ष्म वनस्पनि काया यो पारह स्थान कहे, उपर्युक्त क्रम मे कहना. मे ही पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया के बारह स्थानक में उत्पन्न होने का कहना. यो २४ स्थानक हुए. यो इसीक्रम से मूक्ष्म वनस्पति काया सूक्ष्म वनस्पति काया में उत्पन्न होवे वहां तक कहना. ॥ ९॥ अहो भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया लोक के पूर्व के चरिमांत में मारणांतिक समुद्धात कर के लोक के दक्षिण के चरिमांत में अपर्याप्त मूक्ष्म पृथी काया में उत्पन्न होने योग्य होवे बह कितने समय के विग्रह है। प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेग्महायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्य
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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