________________
4- अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
.. कइविहाणं भले । भवसिद्धिया एगिदियः १. ? गोयमा ! पंचविहा भयसिद्धिया एगिदिया पण्णत्त, तंजहा-पुढवीकाइयाः जाव वणस्सइकाइया, भेदो चउक्कओ जाब वणस्सइकाइयातिः ॥ भवालिडिया पजस सुहुप्त पुढवीका. इयाणं भंते ! कइकम्मपगडीओ बंधइ, एवं एएणं अभिलावणं जहेब पढमिजगं एगिदियसयं तहेव भवसिद्धिय सयपि भाणियर उहेसम्ग परिवाडी तहब. जाय अचरिमित्ति ॥ सेवं भते ! भंतेत्ति ॥ पंचमए एगिंदिर सयसम्मत्तं ॥ ३३ ॥ ५ ॥ क्इविहाणं भंते ! कण्ह लेस्सा भवसिद्धिया एमिंदिया पण्णता ? गोयमा ! पंचविहा अहो भगवन ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने कहे है ? अहो गौतम ! बांच भवमिद्धिक एकेन्द्रिय
श्रीकाया यावत् वनस्पतिकाया यों चार भेद बनस्पतिकाया पर्यना कहना. अहो. भगवन् !
क पर्याप्त सुक्ष्म पृथ्वीकाया कितनी प्रतियों ? यो इस क्रम में जैसे पहिला एकन्द्रिय शतक कहा वैसे. ही भवसिद्धिक शतक चरिम पर्यन्त इग्यारे उद्दश कहना, अहो भगवन् ! आपके बचन मत्य हैं. यो पांचवा एकेन्द्रिय शतक संपूर्ण हुवा ॥ ३३ ॥५॥ +. . अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्यावाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने कडे हैं ?: अहो गौतम् ! पांच कृष्ण
- • प्रकाश-राजाबहादुर लालामुखदेवसहायनी मालामसादजी
-
भावार्थ
1