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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पजत्तगा जहा परंपरीक्वष्णगा ॥२३॥
चरिमावि जहाँ परंपरोववण्णगा तहेवः ॥ ३३ ॥ १०॥ + . .. एवं अचरिमावि ॥ ३३ ॥ ११ ॥ . . सेव भंते रत्ति आर. विहरइ एवं एए एकारस उद्देसगा । पढम एगिदिय सयं सम्मत्तं ॥ ॥ *:: : +'. कइविहाणं भंसे ! कण्हलेस्सा एगिंदिया पणत्ता ? गोयमा पंचविहा कण्हलेस्सा... एमिंदिया पण्णता, तंजहा पुढर्वाकाइया जाच वणस्तइकाइया ॥ १ ॥ कण्हलेस्सा भंते ! पुढवीकाइया कइविहा प• ? गोयमा ! दुविहा प्र• तंजहा-सुहुम पुढवीपरंपरा पर्याप्त का परंपरा उत्पन्न जसे कहना ॥ ३३॥९॥ ॥ चरिम का परंपरोत्पन्न जैसे कहना ॥ ३३ ॥ १० ॥ + चरिम जैसे अचरिम का कहना ॥ ३३ ॥११॥ + यों इग्यारह उद्देशे हुवे. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यों कहकर गौतमस्वामी विचरने लगे. यह पहिला एकेन्द्रिय शतक संपूर्ण हुआ.॥ ३३ ॥१॥ + .... ....... + . अहो मगान् ! कृष्ण लेश्यावाले एकेन्द्रिय कितने कह है ? अहो गौतम ! कृष्ण लेश्यावाले एकेन्द्रिय के पांच भेद कहे हैं. पृथ्वीकाया यावत् वनस्पतिकाया. अहो मेगवन् ! कृष्ण लेश्यावाले पृथ्वीकाया के.
प्रकाशक-राजाबहादुर लामा मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ