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दोसुवि उद्देसएसुअहेसत्तम पुढवीसु णउववातेयो सेसं तंचेव ॥ सेवं भंते रत्ति ॥३१॥१६ 14 मिच्छट्ठिीहिंवि चत्तारि उद्देसग्गा कयन्या जहा भवमिद्धियाणं॥सेवं भंत रत्ति ॥३॥२०॥ एवं कण्हपक्खिएहिवि लेस्सा संजुत्ता चत्तारि उद्देसगा कायव्वा जहेव भवसिद्धिएहिंवि सेवं भंते २ ! त्ति ॥ ३१ ॥ २४ ॥ * ॥ पुक्कपक्खिएहिं एवं चेव चत्तारि उद्देसगा भाणियबा जाव वालुयप्पाभा पुढवि काउलेस्स सुक्कपक्खिए खड्डाग
कलिओग रइयाणं भंते कओ उववर्जति तहेव जाव णो परप्पओगेणं उववज्जति ॥ भावार्थ तमतमा पृथ्वी में समदृष्टि नहीं उत्पन्न होते हैं ऐसा कहना. शेष सब वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! आपके 1B वचन सत्य है यों इकतीसवे तशक में बारह से सोलह तक उद्देशे संपूर्ण हुवा. ॥३१॥ १२-१६॥
} भवसिद्धिक के चार उद्देशे कहे वैसे ही मिथ्यादृष्टि के भी चार उद्देशे कहना. अहो भगवन् !. आपके 1. वचन सत्य हैं यो हकतीसरे शतक में सोल से बीस तक चार उद्देशे हुये ॥ ३१ ॥१६-२०॥
र कृष्ण पक्षिक के भी लेश्या की साथ चार उद्देशे भवसिद्धिक जैसे कहना. अहो
भगवत् । आप के वचन सत्य हैं ॥ ३१ ॥ २०-२४ ॥ 1। ऐसे ही शुक्ल पक्षिक के चार उद्देशे कहना यावत् बालुपमा पृथ्वी के कापुत लेश्या वाछे शुक्ल पक्षिक
+8+ पंचांगविवाह पणति (भगवती) सूत्र 4.88
एकतीपा शतक का १६ से २८ उद्देशा 428