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. पंचमांग विवाह एण्णत्ति (भगवती) सूत्र Page
कम्मं एवंचेव जाब अणागारांवउत्ताए ॥ एवं असुरकुमारावि ॥ एवं आव वेमाणिया ॥ णवरं जं जस्स अत्थि तं तस्स भाणियव्वं ॥ एवं णाणावरणिज्जेणवि दंडओ ॥ एवं णिरवसेसं जाव अंतराइएणं ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ।। जाव विहरइ ॥ एवं एएणं , गमएणं जंचव बंधिसए उदेसग परिवाडी सव्वेवि इहावि भाणियव्वा जाव अचरिमोति ॥ अणंतर उद्देसगाणं चउण्हवि एगाए वत्तव्यया, सेसाणं सत्तण्हं एक्का
वत्तव्यया ॥ कम्मं पट्टवणा सयं सम्मत्तं॥२९॥ एगणतीसइमं सयं सम्मत्तं ॥ २९॥ हैं वे समकाल में आयुष्य कर्म वेदकर विषम काल में निर्जरा करते हैं. अहो भगवन् ! सलेशी अनंतरोत्पन्न नारकी पाप कर्म वगैरह अनाकारोपयोगतक वैसे ही कहना ऐसे ही असुर कुमार यावत् वैमानिक पर्यंत करना. ऐसे ही झानावरणीय कर्म यारत् अंतराय कर्म पर्यंत दंडक कहना. अहो भगवन्! आपके वचन सत्य यो कहकर यावत् विचरनेलगे. यो इस गमा से जैसे बंधी शतक में उद्देशे कहै वैसे ही परिपाटी से यहां पर भी अचरिम पर्यंत इग्यारे उद्देशे कहना. अनंतरके चार उद्देशेकी एक वक्तव्भता और शेष सात उद्देशेकी एक वक्त व्यक्तता जानना।यह कर्म प्रस्थापना शतक समाप्त हुआ.॥२९॥ इति गुन्नतीसवा शतक समाप्तम् ॥ २९ ॥
भावार्थ
गुनासवा शतक का इग्यारवा उद्देशा
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