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4. अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पुच्छा ? गोयमा ! पढम ततिया भंगा ॥ एवं सवपदेसुवि णेरइयाणं पढम ततिया भंभा, णवरं सम्मामिच्छत्त ततिओ भंगो ॥ एवं जाव थणियकुमारा ॥ पुढवीकाइया आउकाइया वणस्सइकाइयाणं तेजे.लेस्साए ततिओ भंगो, लेतेसु पदेसु सव्वत्थ पढम ततिया भांगा ॥ तेउकाइय बाउकाझ्या सव्वत्य पढय ततिया भंगा, वेइंदियतेइंदिप चउरिदियाणं एवंचेव पवरं सम्मत्त ओहियणाणे अभिणियोहियणाणे सुअणाणे एएसु
चउसुवि ठाणेसु ततिओ भंगो ॥ पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं सम्मामिच्छते ततिओ क्या मोहनीय कर्म का बंध कीया पूच्छा ? अहो मौतम ! जैसे पापा का कहा वैसे ही विशेषता रहित वैमानिक पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! अचरिम नारकी ने क्या अयुध्य कर्मका धंध कीया एच्छ ? अहो गौतम ! पहिला तीसरा भांगा कहना. नारकी के सब पद में पहिला तोपरा यो दो भांगे काहना. सम्म मिथ्यात्व में तीसरा मांगा कहना. ऐसे ही स्तनित कुमार पर्यंत कहना. पृथ्वीकाया, अपकाया व वनस्पतिकाया की तेजोलेश्या में तीसरा भांगा और शेष सब पद में पहिला व तीसरा भांगा. तेउकाया व वायु काया में सब स्थान पहिला नीसरा भांगा. वेइन्द्रिन, तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय में ऐसे ही परंतु सम्यक्त्व च अधिक ज्ञान, आभिनियोधिक ज्ञान व श्रुत ज्ञान इन चार स्थान में एक तीसरा भांगा. तिर्यंच पंचेन्द्रिय
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुवदेवलहायजा ज्यालाप्रसादजी,