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१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
णपुंसगंवेदए ॥ सकसाइ जाव लो भकसाइ ॥ सजोगी मणजोगी वइजोगी कायजोगी ॥सागारोवउत्ते अणागारोवउत्ते ॥ एए सव्वेसु पदेसु पढमवितिया भंगा भाणि. यन्वा ॥ एवं असुरकुमारस्सवि वत्तव्यया णवरं तेउलेस्सा ॥ इस्थिवेदगा पुरिसवेदगा अब्भहिया; णपुंसगवेदगा णभण्णइ, सेसं तंचेव ॥ सव्वत्थ पढमवितिया भंगा ॥ एवं जाव थणियकुमारस्स ।। एवं पुढवीकाइयस्सवी, आउकाइयस्सवि जाव पाँचदिय तिरिक्खजोणियस्स सम्वत्थ पढमवितिया भंगा, णवरं जस्सजा-लेस्सा-दिट्ठी-गाणं
अण्णाणं-वेदो-जोगो जस्सजं अत्थितं तस्स भाणियब्वं, सेसं तहेव ॥ मणूसस्स जच्चेव नपुंसक वेदी, सकपायी यावत् लोभ कषायी, सयोगी, मन योगी,वचन योगी व काया योगी; सारोपयोग-1 युक्त व अनाकारोपयोगयुक्त इन सब में पहिला व दूसरा ऐसे दो मांगे पाते हैं. ऐसे ही असुरकुमार की वक्तव्यता परंतु असुरकपार में तेजोलेश्या अधिक कहना. स्त्रीवेद व पुरुष वेद ऐसे ही दो वेद कहना. परंसु नपुंसक वेद नहीं कहना. सब में पहिला दुसरा दो गमा कहना. ऐसे ही स्तनित कुमार पर्यंत कहना. पृथ्वीकाय अप्काय यावत् तिर्यच पंचेन्द्रिय तक सर्व स्थान पहिला दूसरा ऐसे दो भांगे कहना. परंतु विशेषता कि जहां जो लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान, वेद, योग होवे वहां उतने कहना. मनुष्य का ममुचय जीव जैसे
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प्रकाशक-राजाबहादुर काला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी।
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भावार्थ