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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी got
से किंतं सुस्सुसणा विणए ? सुस्मुणाविणए अणेगविहे ५० तं० सक्कारेतिवा सम्मा... णेतिवा जहा चउद्दसमसए तइयउद्देसए जाव पडिसंसाहरणया ॥ सेत्तं सुस्सूसणावि जए ॥ से किंतं अणच्चासाहणाविणए ? अणञ्चासाहणाविणए एणयालीसविहे पण्णत्ते, तंजहा-अरहंताणं अणच्चासादणया. अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अणच्चासादणया, आयरियाणं अणच्चासादणया, उवज्झायाणं अणच्चासादणया, थेराणं
अणञ्चासादणया, कुलस्स. अणच्चासादणया, गणस्स अणच्चासादणया, संघस्स अणभेद कहे हैं. शुश्रूपा विनय और अनाशातना विनय.शुश्रूषा विनय किसे कहते हैं ? शुशूपाविन्य के अनेक भेद कहे सन्मान देथे. वगैरह जैसे चौदहवे शतक के तीसरे उद्देशे में कहे वो कहना. यावत जाते हुवे को पहुंचावे यह मुश्रूषा विनय कहा. अनाशातना विनय किसे कहते हैं? अाशातना विनय के ४२ भद का हैं. १ अरिहंत की आशातना, करनी नहीं२अरिहंत प्ररूपित धर्म की आसातना करनी नहीं, आचार्य की आसातना करनी नहीं,उपाध्याय की,स्थविर,कुल,गण,संघ,क्रियावंत और करनेवाले की सभाग (मामिल आहारपानी) आसातना करनी नहीं वैसे ही आभिनिवोधिक ज्ञान यावत् केवल ज्ञान इन पांच ही ज्ञान की आतातना करनी नहीं, उक्त पसरह को बहुमान सन्मान देना यह ३० और उन पभरह के गुणानुवाद करना. यों४५बोल हुवे. यह अना
पाशक-राजाबहादुर लाला मुखदरमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ