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पंचमाङ्ग विवाह पण्णा (भगवती) सूत्र 2280
उवसमिएवा खइएवा भावे होजा ॥ ३४ ॥ सामाइय संजयाणं भंते ! एगसमयाणं केवइया होजा ? गोयमा ! पडिवजमाणए पडुच्च जहा कसाय कुसीले तहेब गिरवसेसं ॥ छेदोवट्ठावणिया पुच्छा ? गोयमा ! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अस्थि सिय
२८७५ णत्थि ॥ जइ अस्थि जहण्णणं एक्कोवा दो तिणिवा उक्कोसेणं सयपुहुत्तं, पुन्वपडिवण्णए पडुच्च सिय अस्थि सिय णत्थि ॥ जइ अत्थि जहण्णेणं कोडिसय पुहुत्तं, उक्कोसेणवि कोडिसयपुहुत्तं ॥ परिहारविसुद्धिया जहा पुलागा ॥ सुहुमसंपरागा जहा णियंठा ॥ अहक्खायसंजयाणं पुच्छा ? गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अस्थि । सामायिक संयम किस भाव में होये ? अहो गौतम ! क्षयोपशम भाव में होवे यों सूक्ष्म संपराय पर्यंत कहना. यथाख्यात की पृच्छा, अहो गौतम ! उपशम क्षायक भाव में होवे ॥ ३४ ॥ अहो भगवन् ! सामायिक संयमी एक समय में कितने हो ? अहो गौतम ! वर्तमान आश्री कषाय कुशील जैसे यों सब कहना. छेदोपस्थापनीय की पृच्छा, अहो गौतम ! वर्तमान आश्री स्यात् होवे स्यात् न होवे, यदि होये । तो जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट प्रत्येक सो पूर्व काल आश्री स्यात् होवे स्यात् न होवे यदि होवे तो जघन्य प्रत्येक सो क्रोड उत्कृष्ट भी प्रत्येक सो क्रोड. परिहार विशुद्धका पुलाक जैसे कहना,मूक्ष्म संपराय का निधन
488+ पचीसवा शतक का सातवा
भावार्थ
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