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भावार्थ
4-११०+- पंचमाङ्ग विवाह पण्यति ( भगवती ) सूत्र 48+
सामाइय संजयस्तणं भंते! केवइया चरितपजवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता चरितपजवा पण्णत्ता, एवं जाव अहक्वायसंजयस्स ॥ सामाइयसंजएणं भंते !" सामाइय संजयस्स सट्ठाण सन्निगासेणं चरित्तपजवेहिं किं हीणे तुले अन्भहिए ? गोयमा ! सिय हीणे छट्ठाणचडिए || सामाइयस्सणं भंते ! छेदोवद्वावणिय संजयस्स परट्ठाण सन्निगासेणं चरितपज्जवेत्रिं पुच्छा ? गोयमा ! सिय होणे छट्टाणवडिए || एवं परिहारविसुद्धियस्सवि | सामाइयसंजएणं भंते ! सुहुमसंपरागसंजयस्स परट्ठाण गाणं चरितजवा पुच्छा ? गोयमा ! हीणे णो तुले णो अब्भहिए, अनंतगुने ॥ १४ ॥ पर्यवद्वार - अहो भगवन् ! सामायिक संयमी को कितने चारित्र पर्यत्र कहे हैं ? अहो गौतम ! अनंत चारित्र पर्यव कहे हैं. यों यथाख्यात संयम पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! सामायिक संयम सामायिक संयम की साथ चारिय पर्यव से क्या हीन तुल्य व अधिक हैं ? अहो गौतम ! स्यात् । {द्दीन, स्यात् तुल्य, स्वात् अधिक यों छढाणवडिया. अहो भगवन् ! सामायिक चारित्र छेदोपस्थापनीय {की साथ चारित्र पर्यव से क्या डीन, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? अहो गौतम !: स्वात् हीन यावत् छट्टाण बडीया. यों परिहार विशुद्ध की साथ कहना. सामायिक संयति के सूक्ष्म संपराय संयति का परस्थान
+-- पचीसना शतक का सातवा उदेशा 49
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