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- पलास
तियसमुग्घाए ॥ वउसस्सणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! पंचसमुग्धाया पण्णत्ता तंजहा वेयणासमुग्घाए जाव तेयासमुग्घाए एवं पडिसेवणाकुसालेवि. कसायकुसीलस्स पुच्छा, गोयमा ! छ समुग्धाया पण्णत्ता तंजहा-वेयणासमुग्घाए जाव आहारगसमुग्घाए, णियंठस्सणं पुच्छा ? गोयमा ! णत्थि एकोवि ॥ सिणायस्मणं पुग्छा ? गोयमा ! एगे केवलिसमुग्घाए पण्णत्ते ॥ ३२ ॥ पुलाएण भैते ! लोगस्स किं संखेजइ भागे होजा असंखेज्जइभागे होज्जा संखेजेनु भागेसु होजा, असंखेजेसु
भागेसु होज्जा सव्वलोए होजा ? गोयमा ! णो संखेजइ भागे होजा, भावार्थ वेदनीय कषाय व मारणांतिक. बकुश की पृच्छा, अहो गौतम ! वेदना यावत् तेजस् यो पांच समुद्धात
यो प्रतिसेवना कुशील का जानना. कषाय कुशील की पृच्छा, अहो गौतम ! वेदना यावत् आहार यो छ समुद्धात. निर्ग्रन्थ की पृच्छा, अहो गौतम ! एक भी समुद्धात नहीं. स्नातक की पृच्छा, अहो,
गौतम ! एक केवली समुद्धात ॥ ३२ ॥ अहो भगवन् ! पुलाक क्या लोक के संख्यात भाग या असं 56 ख्यात भाग जितना होवे या संख्यात अथवा असंख्यात भाग में होवे अथवा सष लोक में होवे ? अहो ।
गौतम , संख्यात भाग जितना होवे नहीं परंतु असंख्यात भाग जितना होवे संख्यात भाग में होवे नहीं ।
-पंचमांग विवाह षण्णत्ति (भगवती) सूत्र
तक का छठा उद्देशा