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48 अनुवादक-बालब्रह्मधारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
'पडिसेवणासीलेवि; कसायकुसीले एवंचेव णियंठरसणं पुच्छा,गोयमा जहणणं एक्को .. उक्कोसेणं दोण्णि, सिणातस्सणं पुच्छा ? गोयमा ! एक्को ॥ पुलागस्सणं भंते ! गाणा भवग्गहणिया आगरिसा पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दोणि उक्कोसेणं सत्त ॥ वउसस्सणे पुच्छा ? गोयमा ! जहषणेणं दोषिण उक्कोसेणं सहस्सग्गसो, एवं जाव कसाय कुसीलस्स ॥ णियंठस्सणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं दोणि उक्कोसेणं पंच ॥ सिणातस्सणं पुच्छा ? णो एकोवि ॥ २९ ॥ पुलाएणं भंते ! कालओ केवचिरं होइ
गोयमा! जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ॥ वउसेणं पुच्छा ? गोयमा ! प्रत्येक सो वक्त आवे, ऐमे ही प्रातिसेवना व कषाय कुशील का जानना. निर्ग्रन्थ की पृच्छा, अहो गौतम ! जपन्य एक उत्कृष्ट दो, स्नातक की पृच्छा, अहो गौतम ! एक वक्त आवे. अहो भगवन् ! पुलाक बहुत भव आश्री कितनी वक्त आवे ? अहो गौतम ! जघन्य दो उत्कृष्ट सात वक्त आवे (जघन्य दो भव आश्री दो वक्त और उत्कृष्ट भव करे सब प्रथम भव में एक और अन्य दो भव में तीन वक्त आवे यो सात ) बकुश का प्रश्न, अहो गौतम : जघन्य दो उत्कृष्ट प्रत्येक हजार वर्ष ऐसे ही कषाय कुशील पर्यंत कहना. निर्ग्रन्थ की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य दो उत्कृष्ट पांच, स्नातक की पृच्छा, एक भी वक्त आवे नहीं ॥ २९ ॥ अहो भगवन् ! पुलाक कितना काल तक रहे ? अहो गौतम ! पुलाक जघन्य
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ
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