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________________ - गोयमा! अविराहणं पडुच्च णो इंदत्ताए उववज्जेज्जाजाव णोलोगपालत्ताए उववजेजा,अहमिंदत्ताए उववजेजा । विराहणं पडुच्च अण्णयरेमु उक्वजेजःपुलागस्सणं भंते! देवलोगेस उबवजमाणस्स केवइयं कालं द्विइ पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमपहुत्त, उक्कोसेणं अट्ठारससागरोवमाई,वउसस्सणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं पलिओवम पुहत्तं उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई, एवं पडिसेवणा कुसीलस्सवि ॥ कसायकुसीलस्स. . पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमपुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई । णियंठस्स पुच्छा ? गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसं तेत्तीसं सागरोवमाइं ॥ १४ ॥ पालपने उत्पन्न होवे नहीं. परंतु अहमेन्द्रपने उत्पन्न होवे. और विराधना आश्री किमी अन्य देवतापने ब. उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! पुलाक में काल कर देवलोक में उत्पन्न होनेवाले की कितनी स्थिति कही ? अहो गौतम ! जघन्य प्रत्येक पल्योपम उत्कृष्ट अठारह सागरोपम. बकुश की पृच्छा, अहो गौतम !A जघन्य प्रत्येक. पल्योपम उत्कृष्ट बावीस सागरोपम. ऐसे ही प्रतिसेवना कुशील का कहना. कषाय कुशीलकी पृच्छा, अहो' गौतम ! जघन्य प्रत्येक पल्योपम उत्कृष्ट तेत्तीस सामरोपम. निग्रंथ की पृच्छा, अहो गौतम !" 17 भजघन्य अनुत्कर्ष तेत्तीस सागरोपम की स्थिति कही ॥ १४ ॥ अब संयम द्वार कहते हैं. अहो भगवन् ! ! पंचमांग विवाहं पण्णत्ति (भगवती) मूत्र wwwAAK पच्चीसवा शतक का छठा उद्देशा 48 - ~
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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