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पंचमा बिवाह पण्णा (भगवती ) सत्र 2280
भंते ! किं सामाइयसंजमे होज्जा; छंओवटावणियसंजमे होजा, परिहार विसुद्धियसंजमे होज्जा, सुहुमसंपरायसंजमे होज्जा, अहक्खायसंजमे होजा ? गोयमा ! स माइय संजमे होज्जा छओवट्ठावणिय संजमे होज्जा, णो परिहारविसुद्धिसंजमे होजा, णो सुहुम संपराय संजमे होज्जा, णो अहक्खाय संजम होजा।। एवं वउवि एवं पडिसेवणाकुसीलेवि ॥ कसायकुसीलेणं पुच्छा ? गोयमा ! सामाइय संजमे वा होजा जाव सुहुनसंपरायसंजमे वा होजा, णो अहक्खाय संजमे होजा ॥ णियंठणं
पुच्छा, गोयमा ! णो सामाइयसंजमेवा होजा जाब णो सुहमसंपरायसंजम वा स्नातक का कहना ॥ ५ ॥ अव चारित्र द्वार कहते हैं. अहो भगवन् ! पुलाक क्या सामायिक चारित्र वाले होवे छदापस्थापनीय, परिहार विशुद्ध, सूक्ष्म संपराय या यथारख्यात चारित्र वाले होवे ? अहो गौतम सामायिक चारित्र वाले होते. छदोपस्थापणीय चारित्र वाले होये परंतु परिहार विशुद्ध, सूक्ष्मसंपराय व यथाख्यात चारित्र वाला होये नहीं ऐसे ही बकुश व प्रतिमेवना कुशील का जानना, कषाय कुशील की पृच्छा, सामायिक चारित्र यावत् सूक्ष्म संपराय चारित्र होवे परंतु यथा ख्यात चारित्र होवे नहीं. निर्ग्रन्थ की पृच्छा, अहो गौतम ! सामायिक चारित्र यावत् सूक्ष्म संपराय चारित्र होवे मही. परंतु
48 पञ्चांसवा शतक का छा उद्देशा..
भावार्थ
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