SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2821
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र भावार्थ *ॐ> पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र अणंताओ आवलियाओ ॥ ५ ॥ थोत्रेणं भंते ! किं संखेजाओ आणापाणूओ असंखेज्जाओ जहा आवलियाए वत्तन्वया एवं आणापाणुओवि णिरवसेसा ॥ एवं एएणं गमणं जाव सीसप्पहेलिया भाणियव्वा ॥ सागरोत्रमेणं भंते ! किं संखेजा पलिओवमा पुच्छा ? गोयमा ! संखेज्जा पलिओत्रमा णो असंखेज्जा पलिओत्रमा णो अनंता पलिओमा ॥ एवं ओसप्पिणीओवि || पोग्गलपरियहेणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! णो संखेजा पलिओवमा, गो असंखेजा पलिओवमा, अनंता पलिओमा || एवं जाव सव्वा || सागरोवमाणं भंते ! किं संखेज्जा पलिओवमा पुच्छा ? गोयमा ! सिय संखेज्जा पलिओवमा, सिय असंखंज्जा पलिओवमा, सिय अनंता पलिओवमा || परंतु स्यात् असंख्यात व स्यात् अनंत आवलिकाओं ऐसे ही उत्सर्पिणी पर्यंत कहना. पुद्गल परावर्त की (पृच्छा, अहो गौतम ! संख्यात असंख्यात आवहिकाओं नहीं परंतु अनंत आवलिकाओं जानना ॥ ५ ॥ ६ अहो भगवन् ! स्थोव को क्या संख्यात श्वासोश्वास हैं, असंख्यात श्वासोश्वास हैं या अनंत श्वासोश्वास {हैं ? अहो गौतम ! जैसे आवलिका की वक्तव्यता कही वैसे ही श्वासोश्वास की वक्तव्यता कहना. ऐसेडी शीर्षप्रहेलिका पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! सागरोपम के क्या संख्यात पल्योपम वगैरह पृच्छा, अहो 48 पचीसत्रा शतकका पांचवा उद्देशा 403 २७९१
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy