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पंचमांगविवाह पण्णन्ति (भगवती)सून 428
देसिएहितो खंधेर्हितो परमाणुपोग्गला दवट्ठयाए बहुया ॥ एएसिणं भंते ! दुपदसियाणं ।। तिपदसियाणय खंधाणं दवट्टयाए कयरे कयरेहितो बहुगा ? गोयमा !, तिपदेसिएहितो ।
खधेहितो दुदसिया खंधा दबट्टयाए बहुया, एवं एएणं गमएणं जाव. दसपदेसिएहितो. : : २.७५१ ‘णवपदेसिया खवा दट्टयाए वहुगा॥ एएसिणं भंते ! दसपरसा पुग्छा ? गोयमा ! दसपदेसिएहिंतो खंधहितो संखेज पदसिया खंधा दवट्ठयाए बहुया ॥ एएसिणभंते ! संखेजा पुच्छा ? गोयमा ! संखज पएसिएहितो खंधहिती असंखबपदसिया खंधा
दवट्ठयाए बहुया। एएसिण भतें ! अखेजपदेसिया पुच्छा, गोयमा! असंखेजपदसिएहितो. बहुन याात् विशेषाधिक हैं ?. अहो गौतम : दिनदेशिक स्कंध से परमाणु पुरल द्रव्याकिपना से बहुन । क्यों कि परमाणु पुगल मूक्ष्म होने में बहुत होते हैं. अहो भगवन् ! विभदेशिक स्कंध में तीन पदशिक स्कंध में द्रव्य मे कौन अल्प बहुत हैं ? अहो गौतम ! तीन प्रदेशिक स्कंध से द्विभर्देशिक स्कंध बहुत इस तरह दश मदशिक स्कंध से नव प्रदेशिक स्कंध, द्रव्य से बड़ा हैं. दश प्रदेशिक व संख्यात मंशिक स्कंध में पृच्छा, अहो गीतम! दश प्रदेशिक स्कंध से संख्यात प्रदेशिक संघ बहुत है. क्यों कि संख्यात स्थान की बहुलता है. संख्यात प्रदशिक स्कंध से असंख्यात प्रदेशिक स्कंध द्रव्य ।
पच्चीमत्रा शतक का चौया उद्देशा42
भावार्थ
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