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________________ 79 ४४ री मुनि श्री अमोलक ऋपीजी कम अनवादकबालब्रह्मचारा मुनि श्रा अमालक नपा जीवेणं भंते ! कालवण्णपजवेहिं किं कडजुम्मे पुच्छा ? गोयमा ! जीवपदेसे पडुच्च जो कडजुम्मे जात्र णो कलिओगे ॥ सरीरपदेसे सिय कडजुम्मे जाव सिय कलिओगे ॥ एवं जाव वेमाणिए ॥ सिद्धा चेव ण पुच्छिज्जइ ॥ जीवाणं भंते ! किं कालवण्णपज्जवेहिं पुच्छा ? गोयमा ! जीवपदेसे पडच्च ओघादेसेणवि विहाणादेसेणवि णो कडजुम्मा जाव णो कलिओगा ॥ सरीर पदेसे पडुच्च ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाब सियकलिओगा ॥ विहाणादेसेणं कडजुम्मात्रि जाव कलिओगावि ॥ एवं जाव वेमाणिया ॥ एवं णीलवण्णपज्जवहिंवि दंडओ जैसे करना ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! जीव काले वर्ण पर्याय से क्या कृतयुग्म हैं यावत् कलि युग्म हैं ? अहो गौतम ! जीव प्रदेश आश्री कृतयुग्म यावत् कलि युग्म नहीं हैं क्यों कि जीव अमूर्त है. परंतु शरीर प्रदेश आश्री स्यात् कृतयुग्म यावत् स्यात् कलि युग्म हैं. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत कहना. सिद्ध की पृच्छा नहीं कहना क्यों कि सिद्ध में वर्णादि नहीं हैं. बहुत जीवों की काला वर्ण पर्याय से पृच्छा, अहो गौतम ! जीव प्रदेश आश्री सामान्य से व भेद से कृतयुग्म यावत् कलि युग्म नहीं है शरीर प्रदेश आश्री सामान्य से स्यात् कृतयुग्म है यावत् स्यात् कलि युग्म है, विधाना देश से कृतयुग्म यावत् कलिका . प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी.. भावाथे ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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