SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2764
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ A२७३४ 4.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी पोग्गलाणं जाव सव्व पजवाणय कयरे कयरे जाव बहुवत्तव्वयाए ॥ एएसिणं भंते ! जीवाणं आउयस्स कम्मस्स बंधगाणं अबंधगाणं जहा बहुवत्तव्वयाए जाव आउयस्स कम्मरस अबंधगा विसेसाहिया ।। सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ पणवीससइमरस तइओ उद्दे सो सम्मत्तो ॥ २५ ॥ ३॥ कइणं भंते ! जुम्मा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता तंजहा कडजुम्मे जाव कलिओगे॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ चत्तारि जुम्मा पण्णता कडजुम्मे जाव कलिआगे, एवं जहा अट्ठारसमसए चउत्थदेसए तहेव जाव, से तेणट्रेणं गोयमा! हुन यावत् विशेषाधिक हैं वगैरह सब वक्तव्यता कहना अओ भगवन् ! इन आयुष्य कर्म के बंधक व अबंधक की जैसे बहुतव्यता यावत् आयुष्य कर्म के अबंधक विशेषाधिक. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह पच्चीसवा शतक का तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुन। ॥ २५ ॥ ३ ॥ . . तीसरे उद्देशे में संस्थानादिक का परिमाण कहा चौथे उद्देशे में भी परिमाण के भेद कहते हैं. अहो भगवन् ! युग्म कितने कहे हैं ? अहो गौतम ! युग्म चार कहे हैं, जिन के नाम. कृतयुग्म यावत् कलि युग्म.. अहो भगवन् ! किस कारन से कृतयुग्म यावत् कलि युग्म कहे ? वगैरह जैसे अठारवे शतक में *काशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. . भावार्थ 1
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy