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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
वसियाओ, णो अणादियाओ सपजवसियाओ, अणादियाओ अपज्जवसियाओ ॥ एवं जाव उड्वमहायताओ ॥ ३२ ॥ लोगागाससेढीओणं भंते ! किं सादीयाओ सपजवसियाओ पुच्छा ? गोयमा ! सादीयाओ सपजवसियाओ, णो सादीयाओ अपज्ज. घसियाओ, णो अणादियाओ सपजवसियाओ. णो अणादियाओ अपजवसियाओ एवं जाव उड्डमहायताओ ॥ ३३ ॥ अलोगागास सेढीओणं भंते ! किं सादीयाओ पुच्छा, गोयमा ! सिय सादियाओ सपज बसियाओ, सिय सादियाओ अपनवासिया
ओ सिय अणादियाओ सपनवसियाओ सिय अणादियाओ अपज्जवसियाओ. ॥ पादीण व अनादि सपर्यवसित नहीं है. परंतु अनादि अपर्यवसित हैं ऐसेही ऊर्थ अधोतक की श्रेणियों का जानना, E॥३२॥ अही भगवन्! लोकाकाश की श्रेणियों क्या सादि सपर्यवमित बगैर पृच्छा अहो गौतम मादि सपर्यव
सित हैं परंतु सादि अपर्यवसित, अनादि सपर्यवभित व अनादि अपर्यवसिल नहीं हैं. ऐसे ही उथं अघोदिया पर्यंत जानना. ॥ ३३ ॥ अहो भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियों क्या सादि सपर्यवसित है वगैरह पृच्छा ? अहो गौतम ! स्यात सादि सपर्यवसित स्यात सादि अपर्यवसित, म्यात अनादि सपर्यवा स्यात अनादि अपर्यवसित हैं. ऐसे ही पूर्व पश्चिम व उत्तर दक्षिण की श्रेणियों का जानना. पर
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. प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी आलाप्रसादजी ,
भावार्थ