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मुनि श्री अमोलक ऋषिनी र
सिय कडजुम्मे सिय तेओगे, सिय दावरजुम्मे, सिय कलिओगे, एवं जाव आयते ॥ परिमंडलाणं भंते ! संढाणा पदेसट्टयाए किं कडजुम्मा पुच्छा ? गोयमा ! ओघादेसेणं सियकडजुम्मा जाब सियकलिओगाः विहाणादेसेणं कडजुम्मावि तेओगावि दावरजम्मावि कलिओगावि, एवं जाव आयता ॥ १४ ॥ परिमंडलेणं भंते ! सट्टाणे किं कडजुम्मपएसोगाढे जाव कलिओगंपदेसोगाढे ? गोयमा ! कडजुम्मपएसोगाढे
णो तेओगपदेसोगाढे, णो दावरजुम्म पएसोगाढे, णो कलिओग पएसोगाढे ॥ वट्टेणं संस्थान पर्यंत कहना. ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! परिमंडल संस्थान प्रदेश से क्या कृन, त्रेता, द्वापर व कलियुग्म हैं ? अहो गौतम ! स्यात कृत युग्य, स्यात त्रेता, स्यात् द्वापर व स्यात कलियुग्म है. ऐसे ही आयत संस्थान पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! बहुत परिमंडल संस्थान प्रदेश से क्या कृत युग्म यावत् कलियुग्म है ? अहो गौतम ! समुच्चय आश्री स्यात कृत युग्म यावत् स्यात कलियुग्म विधान आश्री कृत युग्म, प्रेता, द्वापर व कलियुग्म है. एसे ही आयत संस्थान पर्यंत कहना. ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! परिमंडल संस्थान क्या कृतयुग्म प्रदेशावगाही यावत् कलियुग्म प्रदेशावगाही है? अहो गौतमः कृत युग्म प्रदेशावगाही है। परंतु त्रेता, द्वापर व कलियुग्म प्रदेशावमाही नहीं है ॥१५॥ अहो भगवन ! वृत्त संस्थान क्या कृतयुग्म प्रदेशावगाही
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायनी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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