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Ammar
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 498
मणुस्साय असंखेजावसाउय जहेव णागकुमाराणं उद्देसए तहेव वत्तव्यया, णवरं तइयगमए दिई जहण्णेणं पलिओवमं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई, ओगाहणा जहण्णेणं गाउयं, उक्कोसेणं तिण्णिगाउयाइं सेसं तंचेव ॥ संवेहो से जहा एत्थचेव उद्देसए ॥ असंखेजवासाउय सण्णिपंचिंदियाणं संखज्जवासाउय सण्णि मणुस्सा जहेव णागकुमारुहेसए णवरं वाणमंतराट्ठिई संवेहं च जाणेज्जा ॥ सेवं भंते ! २ त्ति ॥
चउवीस. वावीसमो ॥ २४ ॥ २२ ॥ कहना. ॥ ९ ॥ संख्यात वर्षवाले से ही कहना. परंतु स्थिति, अनुबंध व संबंध दोनों की स्थिति से जानना, यदि असंख्यात वर्षवाले मनुष्य में से उत्पन्न होवे तो वगैरह नागकुमार जैसे वक्तव्यता कहनी. परंतु तीसरा गमा में स्थिति जघन्य एक पल्योपम उत्कृष्ट तीन पल्योपम कहना, अवगाहना जघन्य एक गाउ उत्कृष्ट तीन गाउ की कहना, संबंध वगैरह इसी उद्देशे में असंख्यात वर्ष वाले संज्ञी तिर्यंच पंचन्द्रिय जसे जानना. संख्यात वर्षवाले संज्ञी मनुष्य का नागकुमार उद्देशा जैसे कहना. परंतु वाणव्यंतर की स्थिति अनुबंध व संबंध जानना, अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं, यह चौवीसवा शतक का बावीसवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ २२ ॥
438 चौवीसवा शतक का बावीसवा
उद्देशा
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