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पंचमा विवाह पण्णत्ति (भगवति ) सत्र Here
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सयरस वीसइमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २४ ॥ २० ॥ x मणुस्साणं भंते ! कओहिंतो उववजंति ? गोयमा ! गैरइएहितोवि उववजंति, जाव देवहितोवि उववजति, एवं उववातो जहा पंचिंदियतिरिक्ख जोणिय उद्देसए जाव तमापुढविणेरइएहितो उववजंति, णो अहे सत्तमाए पुढविणेरइएहिंतो उववजंति ॥१॥ रयणप्पभापुढवीणेरइयाणं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उववजंति सेणं भंते ! केवइकाल?
गोयमा ! जहण्णेणं मासपुहुत्तट्टिईएसु उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु अवसेसा वतन्वया शतक का बीसवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ २०॥
(6) । अहो भगवन् ! मनुष्य कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! मनुष्य नारकी में से उत्पन होते हैं. और तिर्यंच, मनुष्य व देव यों चारों गति में से उत्पन्न होते हैं. यों जैसे तिर्यंच पंचेन्द्रिय का उपपात कहा.. वैसे ही कहना. यावत् छठी तमा में से मनुष्य उत्पन्न होते हैं. परंतु सातवी तमनमा में से नीकलकर, मनुष्य नहीं होते हैं॥॥ अहो भगवन् ! जो रत्नप्रभा नरक का नारकी मनुष्य में उत्पन्न होता है वह कितनी स्थिति से उत्पन होवे ? अहो गौतम ! जघन्य प्रत्येक मास उत्कृष्ट पूर्व क्रोड रत्नप्रभा का जीव मनुष्यायुबंध करता हुवा कम से कम प्रत्येक अर्थात् दो से नव मास तक के आयुष्य में उत्पन्न ।
48 चौबीसवा शतक का इकसवा उद्देशा
भावार्थ
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