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•प्रकाशक-राजाबहादुर लाला
जाव किं पज्जत्तसंखेज अपज्जत्तसंखेज, दोसुवि ॥ ७ ॥ संखेज्जवासाउय सण्णि पंचिंदिय तिरिक्खजोणिए जे भविए पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिपलिओवमद्वितीएसु उववजेज्जा ॥ तेणं भंते ! अवससं जहा एयरस चेव साण्णस्स रयणप्पभाए उववज्ज• . माणस्स पढमगमए, णवरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं उक्कोसेणं
जोअणसहस्सं सेसं तंचेव जाव भवादेसो कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता,
उत्पन्न होवे नहीं. जब संख्यात वर्षवाले उत्पन्न होवे तो क्या पर्याप्त संख्यात वर्षवाले या अपर्याप्त संख्यात भावार्थ
वर्षवाले उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! दोनों उत्पन्न होवे ॥ ७ ॥ जो संख्यात वर्षवाले मंत्री पंचेन्द्रिय पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होने योग्य होवे वे कितनी स्थिति से उत्पन होवे ? अहो गौतम ! मघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति से उत्पन्न होवे, अहो भगवन् ! वे एक समय में कितने उत्पन्न हो ? उस का सब संज्ञी पंचेन्द्रिय रत्नप्रभा में उत्पन्न होवे उस का जैसे पहिला गमा कहा था वैसे कहना.
परंतु अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट एक हजार योजन. शेष भवादेश पर्यंत 12वैसे ही कहना. कालादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट तीन पल्योपम और प्रत्येक पूर्व
13 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी *
खदेवसहायजी
ज्वालाप्रसादजी.