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4.१ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइ भागट्टिईएसु उववर्जति ॥ तेथे भंते ! अवसेसं जहेव पुढवीकाइएसु उववजमाणस्स असण्णिस्स तहेव जिरबसेसे जाव भवादेसोत्ति कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइ भागं पुन्चकोडि पुहुत्त मन्भहियं एवइयं । बिइयगमए एसचेव लडी गवरं कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं चचारि पुवकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ एवइयं २ सोचेव उक्कोसकाला?ईएसु उववजइ जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागट्टिईएसु उक्कोसेणवि पलिओवमस्स उत्पन्न होनेवाले का कहा वैसे ही यावत् असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिवाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होवे तो कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! अवन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवा : भाग की स्थिति से उत्पन्न होवे. शेष सब पृथ्वीकाया में उत्पन्न होनेवाले असंज्ञी का जैसे कहा वैसे ही
भवादेश तक जानना. कालादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवा भाग और 2. प्रत्येक क्रोड पूर्व अधिक, दूसरा गमा में यही लब्धि कहना. परंतु कालादेश से जपन्य दो अंतर्मुहूर्त
उत्कृष्ट चार पूर्व क्रोड चार अंतर्मुहूर्त अधिक. वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा अपन्य उत्तर पल्योपम:
प्रकाशक-राजापाहर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ