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________________ 202 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी संतोमुहुत्त द्वितीएसु उक्कोसणं पुवकोडिआउएसु उववजेज्जा ॥ तेणं भंते ! जीवा एग समएणं केवइया उववजति एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया णवरं संघयणे पोग्गला अणिट्ठा अकंता जाव परिणमंति ॥ओगाहणा दुविहा प०तं. भवधारणिज्जाय उत्तरवेउव्वियाय || तत्थणं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भागं उक्कोसेणं सत्तधणई तिष्णि रयणीओ छच्चंगुलाई ॥ तत्थणं जा सा उत्तर वेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइ भागं उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अढाइजाओ रयणीओ ॥तेसिणं भंते ! जीवा सरीरगा किं संठिया पं० ? गोयमा ! दुविहा ५० उत्कृष्ट पूर्व क्रोड के आयुष्य से उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! वे एक समय में कितने उत्पन्न होवे ? अहो गौतमः जैसे असुरकुमारकी वक्तव्यता कही वैसे कहना. परंतु इस में अनिष्ट, अक्रांत पुद्गल परिणमते हैं. अवगाहना के दो भेद भवधारणीय और 'उत्तरवैक्रेय. उस में भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग [ उत्पत्ति समय ] उत्कृष्ट सात धनुष्य, तीन हाथ और छ अंगुल की और उत्तर वैक्रेय में जघन्य अंगुल का संख्यातवा भाग उत्कृष्ट पन्नरह धनुष्य और अढाइ हाथ, अहो भगवन् ! उन जीवों को कौनसा संस्थान कहा ? अहो गौतम ! उन को दो प्रकार का संस्थान कहा. . प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावाथे |
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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