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सूत्र
भावार्थ
48 पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
उस गमएस संबेहो सेसेसु पंचसु गमएस तहेव अट्ठभवा, एवं जाव चउरिदिएणं समं चउसु संखेज्जभवा, पंचसु अट्ठभवा, पंचिंदिय तिरिक्खजोगिए मणुस्सेसु समं तहेंब अभवा, ट्टिई संवेहं च जाणेज्जा ॥ सेवं भंते! भंतेति ॥ चउवीसइम सयस्स सत्तरसमो ॥ २४ ॥ १७ ॥
तेइंदियाणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति, एवं तेइंदियाणं जहेव वेइंदियाणं उद्देसो वरं ट्ठिई संबेहंच जाणेज्जा, तेउक्काइएसु उववज्जइ, समं तइओगमो उक्कोसेणं
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से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट संख्यात काल इतना यावत् करे. उन के चार गमा में संबंध वैसे ही कहना शेष पांच गमा में आठ भव ऐसे ही यावत् चतुरेन्द्रिय की साथ कहना. चार में संख्यात भव और पांच गमा में आठ भव. पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्यकी साथ भी वैसे ही आठ भव. स्थिति और संबंध अपना २ जानना अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह चौवीसवा शतक का सत्तर हवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ १७ ॥
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अहो भगवन् ! - तेइन्द्रिय कहां से उत्पन्न होवे ? जैसे बेइन्द्रिय का उद्देशा कहा वैसे ही तेइन्द्रिय का उदेश विशेषता रहित कहना. लेखकाया में उत्पन्न होनेवाले का तीसरा गमा में उत्कृष्ट दो सो आठ रात्रि -
१०० चौबीसवा शतक का अठारहवा उद्देश 4
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