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संखेजवासाउय सण्णि पंचिंदिय जाव किं पजत्त• अपजत्त.? गोयमा ! पज्जत्त संखज वासउय णो अपजत्त संखेजवासाउय । पज्जत्त संखेजवासाउय जाव जे भविए णागकुमारेसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइय कालट्ठिई ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवास सहस्साई टुिई, उक्कोसणं देसूणाई दो पलिओवमाइं एवं जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणस्स वत्तव्वया तहेव इहवि णवसुगमएसु णवरं णागकुमारट्ठिति संबेहंच जाणेज्जा सेसं तंचेव ॥ ९॥ २ ॥ जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जति किं सणिमणु.
असण्णिमण्णु ? गोयमा ! सणिमणु० णो असण्णिमण. जहा असुरकुमारेसु उव.. भावार्थस्थिति व संवेध नागकुमार का जानना. ॥१॥ संख्यातवर्ष के आयुष्य वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय यावत्
पर्याप्त अपर्याप्त ? अहो गौतम ! पर्याप्त परंतु अपर्याप्त नहीं. अहो भगवन ! जो पर्याप्त संख्यात वर्ष के. आयुष्यवाला तिर्यंच पंचेन्द्रिय नागकुमार में उत्पन्न होने योग्य होता है वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होता है ? अहो गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट देश उना दो पल्योपम. ऐसे ही जैसे असुरकुमार के नव गंमा में उत्पन्न होने की वक्तव्यता कही वैसे ही यहां कहना. परंतु यहां पर स्थिति और संवेध नागकुमार का कहना ॥ २॥ जब मनुष्य में से उत्पन्न होते हैं तो असंडी मनुष्य में से उत्पन्न होते हैं ? अहो।
मारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी + 4- अनुवादक-बालब्रह्म
* प्रकाशक-राजाबहादुरै लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *