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भावार्थ
42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
णो
उबवजंति, मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, देवेहिंतो उववजंति ? गोयमा ! एहिंतो उववज्जति, तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति, मणुस्सेहिंतो उववर्जति णो देवेहिंतो उववज्जंति जइतिरिक्ख जाणिएहिंतो उववनंति किंएगिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति, वेइंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति, तेइंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जंति, चउरिंदियं तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! जो एगिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उबवजंति, णो बेइंदिय णो तेइंदिय, णो चउरिंदिय, पंचिदियतिरिक्खजेोणिएहिंतो नारकी में व देव में से नही उत्पन्न होते हैं, परंतु तीर्थच व मनुष्य में से उत्पन्न होते हैं. अहो भगवन् ! यदि तीर्थच में से उत्पन्न होते होवे तो क्या एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम! एकेन्द्रिय तिर्यच में से उत्पन्न होवे नहीं यावत् चतुरेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे नहीं परंतु पंचेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे. जब तीर्येच पंचेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे तो क्या संज्ञा तिर्यंच पंचेन्द्रिय { में से उत्पन्न होवे अथवा असंज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे ?
अहो गौतम ! संज्ञी व असंज्ञी दोनों
तीर्थच पंचेन्द्रिय में से उत्पन्न दोवे. यदि असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे तो, क्या जलचर स्थलचर
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी