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________________ पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति ( भगवती ) मूत्र Pages अभी सेडिय-भंतिय-दभतिर दम्भ कुत-मयग-पोइदतल अजुग आसाढगरोहि यसमु अबक्खीरभुस-एरंड-कुरु-कुंदकरकर-सुंठ-विभंग-मुहरण-घुघुरगसिप्पिय सुकुलि तणाणं, एएसिणं जे जीवा मलत्ताए वक्कमंति, एवं एत्थधि उद्देसगा णिरवसेसं जहेव वंत वग्गो ॥ छट्टो वग्गो ॥ ६ ॥ इक्कीसस्सय' छट्ठो ॥ २१ ॥ ६ ॥ अह भंते! अञ्भोरुह वायण हरितग तंदुलेजय तणुवत्थुल पोरग मजारयाइ-बिल्लियाल कदग-पिप्पलिय-दवितात्थिय कसाय मंडकि मूलग सरिसब अंबल साग जियतंगाणं 482 इक्कीसवा शनक का सातवा उद्द उद्देशा - HIE है जो भगवन् ! सेडिय भतिक, दर्भ, कुरा, पांग, पोइइ. इत्त ठ, अर्जुन आषाढक,रोहिन, ममु.अवक्वार. भुर, एरंड, कुरुकुद, करकर सुंदर, विभंग महुरण, घरग, शिलित, मुकुल ओषधि विशेष वनस्पति इन में जो जीव मू उपने उत्पन्न होरे वगाह जैसे वंशर्ग कहा वैभे ही यहां पर भी सव उद्देशे कहना. यह छठा वर्ग संपूर्ण हुवा. यह इक्कीसवा शतक का छठा उद्देशा संपूर्ण हुआ ॥ २१ ॥ ६॥ .. 6 अहो भावन् ! अन्भोरुड, वायग, हरितक, तुंदुल, तनु, चथुली, पोरक, मानरिक, दक, पलकंद, सास्थय, कपाय, मडके, मूग, सारिसर, अंजल भाग और जियांतक इनमें जो जीवों मूलपने उत्पन्न होते । 488
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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