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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
छक्कसमजिया , जेणं गैरइया जहण्णेणं एक्कणवा दोहिंवा तिहिंवा उक्कोसेणं पंचएण पवेसणएणं पविसंति तणं णेरइया णो छक्कसमजिया २, जेणं गैरइया छक्कएणं
अण्णणय जहण्णे एकेणवा दोहिंवा तिहिंवा उक्कोसे गं पंचएगं पवेसणएणं . पविसंति तेणं गैरइया छक्केणय णो छक्केणय समजिया ३, जेणं णेरइया अओगेहिं छ केहि पवेसणएणं पविसंति तेणं णेरइया छकहिय समजिया ४; जणं णेग्इया अणेगेहि छोहि अण्णेणय जहण्णेणं एक्वणवा दोहिंवा तिहिंवा उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति तेणं णेरइया छक्केहिय को छकणय समजिया ५, से तेणटुणं तंचेव सम. तब वे छ के समाजित कहाये जाते हैं. २ जिसने एक समय में जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट पांच जीव प्रवेश किया वे नारकी नो छक समार्जित हैं अर्थात् एफसमय में छ नहीं उत्पन्न हुए हैं. ३ जितने नेरियों एक छक्के कर और उपर जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट पांच प्रवेशन से प्रवेश करते हैं वे छक्क से नो छक्क से समाजित है, ४ जितने नारकी ने अनेक छक्क थोक से प्रवेश किया वे बहुत छक्क में “मानित हैं और ५११ जिनने नेरियोंने अनेक छक्क से और जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट पांच से प्रवेश करते हैं वे भोक छान व अनेक नो नो मे समाजित हैं, इंसी से अहो गौतम ! नारकी में पांच भांगे पाते हैं, ऐसे ही स्तनित
प्रकाशक-राजावहादरलाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रमादजी
भावाथे