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भावार्थ
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 4384
अन्यत्तव्वग संचिया॥से तेणट्टेणं गोयम ! जाव अव्वत्तव्वग संचियावि॥ एवं जाव थणिय कुमारा | पुढवीकाइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! पुढवीकाइया णो कतिसंचिया अकति संचिया णो अन्त्तव्वग संचिया ॥ से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव णो अन्वत्तब्वग संचिया ? गोयमा ! पुढवीकाइया असंखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति, से तेणट्टेणं जाणो अन्तवग संचिया ॥ एवं जात्र वणस्सइकाइया || वेइंदिया जाय वेमागिया जहा णेरड्या || सिद्धाणं पुच्छा ? गोयमा ! सिद्धाकति संचिया णो अकति संचिया अवतन्त्र संचियावि ॥ स केणटुणं भंते ! जाव अव्यत्तव्वग संचियात्रि ? संचित नहीं हैं परंतु अकति संचित हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है कति संचित नहीं हैं अति मंचित हैं और अवक्तव्य मंचित नहीं है. अहो गौतम ! पृथ्वीकाया असंख्यात प्रवेश से प्रवेश करते हैं इस से अकति संचित हैं परंतु कतिसंचित व अवक्तव्य संचित नहीं है. ऐसे ही वनस्पति काया पर्यंत कहना. बेइन्द्रिय से यात्रत् वैमानिक पर्यन्त नारकी जैसे कहना. अहो भगवन्! क्या सिद्ध कवि संचित हैं अकति संचित हैं कि अवक्तव्य संचित है ! अझे गौतम! सिद्ध कति संचित हैं परंतु अकति संचित नहीं हैं और अवक्तव्य संचित हैं. अहां भगवन्! किस कारनसे ऐसा कहा गया यावत् सिद्ध अवक्तव्य, संचित
- वीसवा शतक का दशवा उद्देशा ++
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