________________
-
तओ पच्छा सिझंति जाव अंतं करेंति ? हंता गोयमा ! जे इमे उग्गा भोगा तंचेव जाव अंतं करेंति ॥ अत्थेगइया अण्णयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवंति ॥ १५ ॥ कइविहाणं भंते ! देवलोया पण्णत्ता ? गोयमा ! चउव्विहा देवलोया पण्णत्ता, तंजहा-भवणवासी, वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ वीसइमस्स अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २० ॥ ८ ॥ . .
कइविहाणं भंते चारणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा चारणा पण्णत्ता तंजहा-विजा कुलवाले, ज्ञात और कौरव के कुलवाले इस धर्म में हैं वे आठप्रकार की कर्म रज को प्रक्षाल कर सिद्ध होग यावत् सब दुःखों का क्या अंत करेंगे ? हां गौतम ! जो उग्र, भोग यावत् अंत करेंगे; और कितनेक अन्यतर देवलोक में देवतापने उत्पन्न होगें ।। १५ ॥ अहो भगवन् ! देवलोक कितने कहे हैं ? अहो गौतम ! चार देवलोक कहे हैं १. भवनवासी २ वाणव्यंतर ३ ज्योतिषी और ४ वैमानिक. अहो , भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह वीसवा शतक का आठवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २० ॥ ८॥
आठवे उद्देशे के अंत में देवता का कथन किया. देवता आकाश में गमन करने वाले होते हैं ऐसे ही अनगार भी आकाशचारी होत हैं, इस से उन का कथन इस नवबे उद्देशे में चलना है. अहो भगवन् ! * चारण के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! चारण दो प्रकार के कहे हैं. १ पूर्वगत मूत्राभ्यासी आकाश
भावार्थ
१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मान श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक राजाबहादूर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
~
~
-