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सूत्र
भावार्थ
+ पंचांग-विवाह पण्णाने (भगवती ) सूत्र 40:24
arre पुढची घणोदधिघणो दधिवलएसु आउका इयत्ताए उववज्जित्तर, सेसं तंचेव एवं एएहिं चेत्र अंतरे समोहत्ताओ जात्र अहे सत्तमा पुढवीए घणोदधिघणोदधि बरसु आउकाइयत्ताए उववाएयव्त्रो, एवं जात्र अणुत्तरविमाणाणं ईसिप्पभाराए पुढवी अंतरा समोर जाव अहँ सन्तमाए घणोदधि घणोदधिबलरसु उववारयन्यो ॥ ६ ॥ वाउकाइयाएणं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढ़वीए सक्करप्पभाए पुढवीए अंतरासमोर समोहइत्ता जे भविए सौहम्मे कप्पे वाउकाइयत्ताए उववजित्तर एवं जहा सत्तरसमस वाउकाइयउद्देसएस तहा इहवि, णवरं अंतरेस समोहणा वेयन्त्रो शेष पूर्वोक्त जैसे यावत् सातवी तमतमा पृथ्वी के धनोदधि के घनोदधि वलय में अकायापने उत्पन्न होवे | तक कहना. और इसी तरह सनत्कुमार माहेन्द्र व ब्रह्मदेवलोक यात्रत् अनुसरविमान व ईषत्प्राग्भार {पृथ्वी के बीच का अष्काय का सातवी पृथ्वी के घनोदधि के घनोदधि वलय में अपकायापने उत्पन्न { होने का कहना ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा व शर्करप्रभा के बीच का वायुकाया मारणांतिक { समुद्धात से काल कर के सौधर्म देवलोक में वायुकाय पने उत्पन्न होने योग्य होंवे वह क्या वहां उत्पन्न दोकर आहार करे अथवा आहार करके उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! इस का जैसे सतरहवे शतक में
42+ वीसवा शतक का छठा उद्देशा 40+
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