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लंतगस्सय कप्पस्स अंतरा समोहए पुणरवि जाव अहे सत्तमाए , एवं लंतगस्स महामुक्करस कप्पस अंतरासमोहए पुणरवि जाव अहे सत्तमाए एवं महामुक्करस सहस्पारस्सय कप्पस्स अंतरा पुणरवि जाव अहे सत्तमाए एवं सहस्सारस्सय आणयपाणयकप्पाणं अंतरा पुणरवि जाव. अहे. सत्तमाए एवं आणयपाणय आरणअच्चताणय कप्पाणं अंतरा, पुणरवि जाव अहे मत्तमाए एवं आरण अच्चुताणंगवेजगविमाणाणय अंतरा पुणरवि जाव अहे सत्तमाए एवं गेवेजगविमाणाणं अणुत्तरविमाणाणय अंतरा पुणरवि जाव अहे सत्तमाए, एवं अणुत्तरविमाणाणं
इतिप्पभाराएय पुणरवि जाव अहे सत्तमाए उववायव्यो ॥ ४ ॥ आउकाइएणं भावार्थ
जानना. ऐसे ही ब्रह्मलोक व लंतक के बीच का पृथ्वीकाया मारणांतिक समुद्धात यावत् नीचे सातवी, पृथ्वी में पृथ्वीकायापने पहिले आहार कर के पीछे उत्पन्न होवे. ऐसे ही लंतक व महा शुक्र, महाशुक्र व 23 सहस्रार, सहस्रार व आणतप्राणत, आणतप्राणत व आरणअच्युत, आरणअच्युत व अवयकविमान,
ग्रैचेयकधिमान व अनुत्तर विमान और अनुत्तरविमान व ईषत्माग्भार पृथ्वी की बीच में पृथ्वीकाया ! 26 मारणांतिक समुद्धाल कर के रत्नप्रभा में पृथ्वी कायापने उत्पन्न होने योग्य होवे बगैरह. सब पूर्वोक्त ।
यावत् सातवी तमतमा पृथ्वी में पृथ्वीका यापने उत्पन्न होवे ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा वई
+8+ पंचमांगविवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र <diagon
Nagar- वीसवा शतक का छठा उद्देशा