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सिवहालिद्दए, सियसुक्किल्लए॥जइ एग गंधे-सियसुब्भिगंधे, सिय दुभिगंध।।जइ एगरसे सियतित्ते सियकडुए, सियकसाए, सिय अंबिले, सियमहुरे ॥ जइ दुफासे-सिय सीएय णिडेय सिय सीएय लुक्खेय, सिय उसिणेय गिद्धेय, सिय उसिणेय लुक्खेय, ॥ १ ॥ दुपदेसिएणं भंते ! खंधे कइवण्णे ? एवं जहा अट्ठारसमसए छदेसर जाव सिय चउप्फासे पं० ॥ जइ एगवण्णे- सिय कालए जाब सिय सुकिल्लए, जइ दुवण्णे:सिय कालएय, णीलएय, सिय कालएय लोहिएय, सिय कालएय हालिद्दएय,
सिय कालएय सुकिल्लएय, सिय पीलएय लोहियएय, सिय पाल एय हालिद्दएय, भावार्थ क्वचित् लाल, काचित् पीला व क्वचित् शुक्ल होवे यदि एक गंध होवे तो काचित् सुरभिगंध व क्वचित्
दुरभिगंध होवे. यदि एक रस होबे तो क्यायित् तिक्त, काचित् कटुक, यचित् कषाय, काचित् अम्बट व
चित् मधुर. यदि दो स्पर्श होवे तो काचिन् शीत व स्निग्ध, काचिन शीत व रूक्ष, क्वचित् ऊष्ण व इस्निग्धं और काचित् उष्ण व रूक्ष एसे स्पर्श होवे ॥१॥ अहो भगान् ! द्विपदेशिक स्कंध में कितने ७० वर्ण ऐलेही जैसे अठारवे शतक में छठा उद्देशा कहा यावत् काचित् चार स्पर्श. यदि एक वर्ण है तो
चित् काला यावत् काचित शुक्ल, पदि दो वर्ण होवे तो क्वचित् काला, नीला, काचिन् काला लाल.
पंचमांम विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 4.
बीमया शतक का पांचवा उद्देशा 8248