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141 दुपदेसिएतिवा, तिपदेसिएतिवा, जाव असंखजपएसिएतिवा अणंतषएसिएतिवा खंधे
जेयावण्णे तहप्पगारा जाब सब्वे ते पोग्गलत्थिकायस्स अभिवयणा, प० ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ वीसइमस्स वितिओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ २० ॥ २ ॥ अह भंते ! पाणाइवाए मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले. पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छादसण सल्लविवेगे, उप्पत्तिया जाव पारिणामिया, उग्गहे जाव धारणा, उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार परक्कमे, णेरइयत्ते, अमुरकुमारत्ते जाव वेमाणियत्ते,
णाणावरणिजे जाव अंतराइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मट्ठिीए ३, वरखु. भावार्थ यावत् सब पुद्गलास्तिकाया के नाम कहे हैं. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह वीसवा शतक का
दूसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २० ॥२॥
दूसरे उद्देशे में प्राणातिपातादिक अधर्मास्किाय के पर्यायवाले कहे, अब वही कथन आत्मा को अन्य पना से कहते हैं. अहो भगवन् ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य, प्राणातिपात यावत् मिथ्या दर्शनशल्य का त्याग, उत्पातिया यावत् पारिणामिक, अवग्रह यावत् धारणा, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, व पुरुषात्कार पराक्रम, नारकीपना, असुरकुमारपना यावत् वैमानिक पना, ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय.
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी के
..प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.