SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी ॥ एकोनविंश शतकम् ॥ लेस्साय गब्भ पुढवी, महासवा चरम दीव भवणाय ॥ णिव्वत्ति करण वनचर सुराय एगूणवीसइमे ॥ १ ॥ रायगिहे जाव एवं वयासी-कइणं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ गोयमा ! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ, तंजहा एवं जहा पण्णवणाए चउत्थो लेस्सुद्देसओ भाणियव्वो गिरवसेसो ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ एगूणवीसइमस्सय पढमों उद्देसो सम्मत्तो ॥ १५ ॥ १ ॥ (०) (०) अठारहवे शतक के अंत में प्रश्नोत्तर कहे, वे लेश्या की विशुद्धि से होते हैं; इसलिये उन्नीसवे शतक में प्रथम लेश्या का स्वरूप कहते हैं. इस शतक में दश उद्देशे कहे हैं जिन के नाम. १ लेश्या का, २ गर्भ का ३ पृथ्वी का ४ महा आश्रय व महा क्रिया कार चरम का ६ द्विप का ७ भवन का निर्वृत्ति का ९ करण का और१० वनचरसुर का ॥ * ॥ राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर को बंदना नमस्कार कर ऐसा बोले अहो भगवन् ! लेश्याओं कितनी कही? अहो गौतम ! छ लेश्याओं कही. विगैरह जैसे पनवणा का चतुर्थ लेश्या उद्देशा कहना. तैसे यहां भी कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन *मत्य हैं. यह उन्नीसवे शतक का प्रथम उद्देशा समाप्त हुवा ॥ १९ ॥१॥ *प्रकाशक राजावहदुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy